11 सितंबर बुधवार को नगर में राधा अष्टमी व ओंकारी अष्टमी मनाई जा गई. भाद्रसुदी की अष्टमी को श्री जगदीश्वर धाम राधाकृष्ण मंदिर में प्रातः वेद मंत्रों से संसार की काल्याणकारी शक्ति स्वरूपा भगवान श्रीकृष्ण की आल्हादिनी शक्ति राधारानी का जन्मोत्सव मनाया गया. वहीं श्रीजगदीश्वर धाम महिला मंडल द्वारा मध्यान काल में लाडली जी के जन्मोत्सव पर दिव्य विग्रह का बधाई गायन किया गया और राधारानी के विभिन्न भजनों पर नृत्य किया।श्री जगदीश्वर धाम मंडल की महिला सदस्यों ने जगदीश्वर धाम में एवं आनंद धाम पर पंडित भवानी शंकर शर्मा जी के निजी निवास पर भी निरंतर हर वर्ष राधा अष्टमी राधा रानी का कार्यक्रम जो की भजन शो मधुर के द्वारा चलता है राधारानी व श्रीकृष्ण को श्रृंगार की वस्तु व लड्डू ओर कदली फल का नैवेद्य अर्पण किया महिलाओ को ओंकारी अष्टमी की कथा पंडित महेंद्र पाठक ने सुनाई।
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के बाद 15 दिन बाद मनाई जाती है राधाष्टमी
नगरपुरोहित पंडित मनीष पाठक ने बताया की भगवान श्रीकृष्ण के प्राकट्य उत्सव के ठीक 15 दिन बाद उनकी आदि शक्ति राधारानी भाद्र मास की शुक्ल पक्ष की पावन अष्टमी को प्रकट हुई थी। इस अवसर पर उनके पिता वृषभानु महाराज के यहां भव्य उत्सव का आयोजन किया गया था। उसी समय से राधाष्टमी ब्रज अंचल सहित पूरे भारत में मनाने की परंपरा रही है । वृंदावन में सबसे भव्य राधाष्टमी उत्सव मनाया जाता है। राधाष्टमी के दिन मंदिर में और घरों में भक्त उपवास रखेंगे।
राधाष्टमी की यह है मान्यता
पं दीपेश पाठक ने बताया की राधाष्टमी की महिमा धार्मिक ग्रंथो में इस प्रकार बताई गई है। अष्टमयाम भद्रे शुक्लस्य साझा ता रविवासरे रात्रि परांगण समये… कृष्ण के दर्शन कर राधारानी ने नेत्र खोले थे क्योंकि राधा रानी का प्राकट्य उत्सव विलक्षण घटना थी। वृषभानु महाराज स्वयं राधा रानी को गोद में लेकर गोकुल आए थे। उस समय तक राधा रानी के नेत्र बंद थे बाद में बालकृष्ण के स्पर्श से श्री राधे रानी की आंखें खुल गई ।
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